Kahwa Ki Kheti Kaise karen : कहवा की खेती कैसे करें
कहवा की खेती भारत में बहुत ही जोर जोर से की जाती है चाय की भांति कहवा भी एक उष्ण पे है इसका मूल स्थान अबि सीनियर माना जाता है भारत में इसकी कृषि 1830 में कर्नाटक में प्रारंभ की गई थी आज या भारत के मुख्य व्यापारिक उपज है भारत में लगभग 3 लाख हैक्टेयर भूमि में कहवा की खेती की होती है और विश्व के कुल उत्पादन का करीब 2% उत्पन्न होता है अपने उत्तम स्वाद के कारण भारतीय का हुआ मधुर कहवा (Milk Coffee) के नाम से विख्यात है भारत समस्त विश्व के उत्पादन का केवल 2 प्रतिशत कहवा उत्पन्न करता है
आप लोग जानते हैं कि भारत में भी कौवा का उत्पादन होता है भारत में कौवा का उत्पादन कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्य में कहवा का उत्पादन किया जाता है भारत में कहवा के उत्पादन में कर्नाटक अग्रणी राज्य है जहां कहवा के लगभग 30000 बगीचे हैं कहवा की कृषि के लिए कुल क्षेत्रफल का 60% क्षेत्र अकेले कर्नाटक में है यह समस्त भारत का 70% कहवा उत्पन्न करता है यहां कहवा खेती मुख्यतः शिमोगा, हासन, चिकमगलूर तथा मैसूर जिलों में होता है तमिलनाडु भी कहवा का प्रमुख उत्पादक राज्य है
Kahwa Ki Kheti Overview
Post Type | Information |
Name Of Information | Farming |
Crops Name | Coffee/Kahwa |
Location | India |
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कहवा की खेती की अवस्थाएं
कहवा उष्ण कटिबंधीय पौधा है चाय की भांति कौवा को पैदावार के लिए भी उष्ण एवं आद्र जलवायु बहुत ही अनुकूल होता है इसकी उपज भारत में बहुत ही जोरों से किया जाता है
कहवा की खेती के लिए आवश्यक तापमान
कहवा की खेती सामान्यत उन भागों में की जाती है जहां पर वार्षिक औसत तापमान 20 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है कौवा तेज धूप को सहन नहीं कर सकता है इसलिए इसके आसपास छायादार वृक्ष जैसे केला,नारंगी ,सिनकोना, सिल्वर ओक आदि लगाए जाते है
कहवा की खेती के लिए आवश्यक वर्षा
कहवा के उत्पादन के लिए 150 से 250 सेंटीमीटर वर्षा पर्याप्त होता है यदि वर्षा का वितरण समान रूप से होता हो तो 300 सेंटीमीटर तक वर्षा वाले भागों में भी इनकी खेती की जा सकती है अधिक समय तक सुख मौसम भी इसकी पैदावार के लिए हानिकारक होता है इससे उत्पादन कम हो जाता है
कहवा की खेती के लिए आवश्यक भूमि
कहवा के पौधों के लिए यह आवश्यक की वर्षा का पानी इनकी जड़ों में जमाना है पानी के जमा रहने पर इसकी जड़ खराब हो जाती है यही कारण है कि कहवा की खेती सामान्यत पहाड़ी ढालो पर की जाती है जिसे वर्ष का अधिक पानी भाकर चला जाता है पहाड़ी ढाल तेज हवाओं से भी पौधों की रक्षा करता है
कहवा की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी
कहवा की पैदावार के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है अतः कौवा की कृषि के लिए वनों की साफ की गई भूमि जिसमें उपजाऊ तत्व अधिक होते हैं अच्छी रहती है समानता का वाक्य के लिए लावा की लाल मिट्टी अथवा दोमत मिट्टी विशेष अनुकूल होता है
कहवा की खेती के लिए सस्ते श्रमिक
कहवा की खेती में सस्ते श्रमिकों का भी बड़ा महत्व है चाय की भांति कहवा का उत्पादन भी कई अवस्थाओं से होकर गुजरता है इसमें भी पौधे को रोपण, स्थानांतरित करके, फलों को तोड़ना, सुखना, पीसने तथा डिब्बों में बंद करने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता होती है
कहवा की खेती के लिए उत्पादक क्षेत्र
भारत में कहवा खेती दक्षिण भारत तक सीमित है जहां लगभग 240000 हेक्टेयर भूमि में कहवा पैदा किया जाता है भारत में कौवा के 96,450 है जिसमें ढाई तीन लाख मजदूर काम करते हैं दक्षिण भारत में कर्नाटक ,तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र राज्यों में कहवा पैदा किया जाता है
कहवा की खेती के लिए उत्पादन तथा व्यापार
भारत समस्त विश्व के उत्पादन का केवल दो प्रतिशत का कहवा उत्पन्न करता है यहां का कुल वार्षिक उत्पादन आज का लगभग 3 लाख टन है भारत में प्रति व्यक्ति कहवा की खपत बहुत कम है अतः हमारे यहां के कुल उत्पादन का लगभग 50% विदेशों को निर्यात कर दिया जाता है ग्रेट ब्रिटेन हमारे कौवा का मुख्य ग्राहक ब्रिटेन की अतिरिक्त हमारे यहां से फ्रांस जर्मनी रूस कनाडा ऑस्ट्रेलिया मध्य पूर्वी के देशों को भी बड़ी मात्रा में कहवा का निर्यात किया जाता है सन 2016 से 17 में देश में 0.3 लाख टन का उत्पादन हुआ है
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